बंगाल और महाराष्ट्र में जल्द होगा राष्ट्रपति शासन लागु, राज्य के कानून में होंगे ये बदलाव

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- Senior Editor

भारत के दो राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है। West Bengal की कानून-व्यवस्था की बिगड़ती हालत के कारण विपक्ष राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहा है। वहीं, चुनावों में देरी के कारण Maharashtra में राष्ट्रपति चुनाव हो सकता है। आइए देखें कि राष्ट्रपति शासन लगने से क्या बदल जाता है।

कोलकाता के सरकारी अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के मामले पर देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेता पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री Mamata Banerjee के इस्तीफे और राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा, चुनावों में देरी के कारण महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग सकता है। ऐसे में आइए देखें कि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने से क्या बदल जाता है।

भाजपा पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता Shazia Ilmi ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने के बारे में उचित अथॉरिटी को विचार करना चाहिए। महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने के छह महीने के अंदर चुनाव हो सकते हैं, ऐसा पता चला है। यानी 26 नवंबर 2024 को महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने पर राष्ट्रपति शासन शुरू हो सकता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाने में कोई बुराई नहीं है। मतगणना और गिनती कुछ हफ्तों में पूरी हो जाएगी।

किन करणों से लग सकता है राष्ट्रपति शासन

संविधान के अनुच्छेद 355 और 356 में राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था दी गई है। अनुच्छेद 355 कहता है कि केंद्र सरकार राज्यों को अशांति और बाहरी हमलों से बचाना चाहिए। केंद्र सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य सरकारें संविधान के अनुसार कार्य करती हैं। 356 में राष्ट्रपति को अधिकार दिया गया है कि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था विफल होने पर राज्य सरकार को अपने अधीन ले सकता है।

इन दो अनुच्छेदों को किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा करने के लिए अक्सर एक साथ इस्तेमाल किया जाता है। राज्य सरकार संविधान का पालन करने में विफल रहती है तो राज्यपाल इसे लेकर राष्ट्रपति को रिपोर्ट कर सकता है। जब कैबिनेट की सहमति मिल जाती है, राज्यपाल की सिफारिश को राष्ट्रपति शासन लग सकता है।

कानून व्यवस्था बिगड़ने पर राष्ट्रपति शासन जरूरी नहीं होता। राज्यपाल राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है जब राज्य में किसी भी दल का बहुमत नहीं है और गठबंधन की सरकार भी काम नहीं कर रही है।

राष्ट्रपति शासन लगने के बाद राज्य में होंगे ये बदलाव

राष्ट्रपति शासन की विशिष्टता यह है कि इस अवधि के दौरान राज्यवासियों के मौलिक अधिकारों को छीना नहीं जा सकता है। इस व्यवस्था में मुख्यमंत्री मंत्रीपरिषद् को भंग करता है। राष्ट्रपति राज्य सरकार का कार्यभार और शक्तियां संभालता है। यही नहीं, राष्ट्रपति चाहे तो संसद राज्य विधायिका की शक्तियों का उपयोग करेगी। इससे संसद ही राज्य विधेयक बनाती है। ऐसी स्थिति में संसद ही बजट प्रस्ताव पारित करती है।

इतने समय तक लग सकता है राष्ट्रपति शासन

राष्ट्रपति शासन का प्रावधान केंद्र सरकार को किसी भी असाधारण परिस्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम बनाता है। संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) ने राष्ट्रपति शासन को दो महीने के भीतर अप्रूव करना चाहिए। उस समय लोकसभा भंग होने पर इस व्यवस्था को बचाने के लिए राज्यसभा में बहुमत हासिल करना होगा। फिर एक महीने के भीतर वहां भी अप्रूवल लेना चाहिए। दोनों सदनों का समझौता होने पर राष्ट्रपति शासन छह महीने तक रहता है। इसे 6 से 6 महीने तक बढ़ाकर 3 साल तक बढ़ा सकते हैं।

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